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{{KKRachna
|रचनाकार=मंगलेश डबराल
|संग्रह= }}{{KKCatKavita‎}}<poem>
इन ढलानों पर वसंत आएगा
हमारी स्मृति में
ठंड से मरी हुई इच्छाओं को
फिर से जीवित करता
धीमे-धीमे धुंधुवाता धुँधुवाता खाली कोटरों में
घाटी की घास फैलती रहेगी रात को
ढलानों से मुसाफ़िर की तरह
गुज़रता रहेगा अंधकार अँधकार
चारों ओर पत्थरों में दबा हुआ मुख
अंतहीन आलिंगनों के बीच एक आवाज़
छटपटाती रहेगी
चिड़िया की तरह लहू लुहानलहूलुहान</poem>
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