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जग के उर्वर आँगन में / सुमित्रानंदन पंत
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06:30, 13 मई 2010
बरसो कुसुमों में मधु बन,
प्राणों में अमर प्रणय-धन;
सिमति
स्मिति
-स्वप्न अधर-पलकों में,
उर-अंगों में सुख-यौवन!
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