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14:15, 13 मई 2010 * [[पतंग और चरखड़ी / मुकेश मानस]]
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। मुकेश मानस
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पतंग और चरखड़ी
जिन बच्चों के पास
चरखड़ी और पतंग नहीं थी
उन बच्चों ने खुद को
चरखड़ी बना लिया
और खुद को ही पतंग
वो बच्चे अभी तक
खुशियों के अम्बर को
छूने की कोशिश में लगे हैं
बार-बार गिरते
बार-बार उठते
उन्हीं बच्चों में
शामिल है ये कवि
और उसकी कविता
2001
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