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किंतु साहस झुकता था।
 
 
वहीं धर्षिता खड़ी
 
इड़ा सारस्वत-रानी,
 
वे प्रतिशोध अधीर,
 
रक्त बहता बन पानी।
 
 
धूंकेतु-सा चला
 
रुद्र-नाराच भयंकर,
 
लिये पूँछ में ज्वाला
 
अपनी अति प्रलयंकर।
 
 
अंतरिक्ष में महाशक्ति
 
हुंकार कर उठी
 
सब शस्त्रों की धारें
 
भीषण वेग भर उठीं।
 
 
और गिरीं मनु पर,
 
मुमूर्व वे गिरे वहीं पर,
 
रक्त नदी की बाढ-
 
फैलती थी उस भू पर।
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