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प्रेम में पड़ी लड़की-1 / प्रदीप जिलवाने
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05:36, 17 मई 2010
ताकने लगती है शून्य
जैसे उपस्थित हो वहीं
रोशनी का समन्दर
/
गुहाजिसमें डूबकर
/
पार कर ही
मिल सकती है
अपनी धरती
अपना आकाश।
</poem>
Pradeep Jilwane
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