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{{KKRachna
|रचनाकार=विजय कुमार पंत
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
राम
तुम आना
साथ में
खुदा को लेकर
पश्चिम
से आना
सुना है इशु
वहां रहते हैं
कभी कभी
एक गरीब के घर
को तोड़ते
बम कहते हैं ,
तुम आना
बर्मा होते हुए
बुद्ध को साथ ले आना
वो सड़कों पर
कहीं पड़े मिल
जायेंगे
तुम आओगे
तो वाहे गुरु
ज़रूर आएंगे
वरना वो आना
नहीं चाहते
क्योंकि
लोग उनको सचमुच
बुलाना नहीं चाहते
अगर आ जाओ
तो अयोध्या मत जाना
वहां
लोग तुम्हारा
व्यापर करते हैं
हिन्दू मुस्लिम सभी
सर्युं से खून
भरते हैं
जब आना तो
कश्मीर जाना
जहाँ एक गरीब माँ
का पूरा खानदान
मलवे में दबा है
वो आप सब लोगों से खफा है
उसको मुस्कराहट देने
का काम एक अदद करना
उसके दिल मे
एक मंदिर
बनाने में अल्लाह
की मदद
करना...
</poem>
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|रचनाकार=विजय कुमार पंत
}}
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<poem>
राम
तुम आना
साथ में
खुदा को लेकर
पश्चिम
से आना
सुना है इशु
वहां रहते हैं
कभी कभी
एक गरीब के घर
को तोड़ते
बम कहते हैं ,
तुम आना
बर्मा होते हुए
बुद्ध को साथ ले आना
वो सड़कों पर
कहीं पड़े मिल
जायेंगे
तुम आओगे
तो वाहे गुरु
ज़रूर आएंगे
वरना वो आना
नहीं चाहते
क्योंकि
लोग उनको सचमुच
बुलाना नहीं चाहते
अगर आ जाओ
तो अयोध्या मत जाना
वहां
लोग तुम्हारा
व्यापर करते हैं
हिन्दू मुस्लिम सभी
सर्युं से खून
भरते हैं
जब आना तो
कश्मीर जाना
जहाँ एक गरीब माँ
का पूरा खानदान
मलवे में दबा है
वो आप सब लोगों से खफा है
उसको मुस्कराहट देने
का काम एक अदद करना
उसके दिल मे
एक मंदिर
बनाने में अल्लाह
की मदद
करना...
</poem>