भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय कुमार पंत }} {{KKCatKavita}} <poem> मेरी राह की ठोकरें उतन…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विजय कुमार पंत
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मेरी राह की ठोकरें
उतनी निर्मम नहीं थी
लेकिन जब जब उठा
तुम दबाते रहे
अपनी दुर्भावनाओ से,
दुराग्रहों से
मुझे सताते रहे..

और पैदा करते रहे
एक विश्वास
जो बढ़ता गया
जूनून बनकर मेरे लहू में
चढ़ता गया

मैं हर बार दुगनी ताकत
और दुगुने जोश से उठता रहा
तुम टूटते रहे
मैं जुटता रहा

तुम क्षीण होते गए
और निराशा तुम्हें
खाती रही
तुम्हारे अंतःकरण को जलाती रही

तुम्हारे अन्याय और कृत्यों ने
प्रतिक्रिया में
तुम्हारा ही अहित किया
मुझमें एक दिन
अवश्यम्भावी जीत का
विश्वास समाहित किया
तुम्हारे अन्दर
कड़वाहट भरती रही
शनै:-शनै: तुम्हारी आत्मा मरती रही |

तुम खो चुके हो
अपने विचार
अपनी प्रतिष्ठा
अपना विवेक
अपने शब्द
सुर साज़ और आवाज भी..
वो मेरा संघर्ष नहीं
मुझे मिटाने का तुम्हारा
जूनून है ..
जिसकी वजह से मैं जिंदा हूँ आज भी....
</poem>