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कविता / लाल्टू

23 bytes added, 07:40, 24 मई 2010
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=
}}{{KKCatKavita‎}}<poem>जैसे ज़मीन निष्ठुर।
अनंत गह्वरों से लहू लुहान लौटते हो और ज़मीन कहती देखो चोटी पर गुलाब।
निष्ठुर कविता।
तुमने शब्दों की सुरंगें बिछाईं, कविता कहती मैं वेदना, संवेदना, पर नहीं गीतिका।
शब्द नहीं, शब्दों की निष्ठुरता, उदासीनता।उदासीनता ।</poem>
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