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|रचनाकार=किशोर कुमार खोरेंद्र
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यह कैसा हैं महावृत
जो हैं अपरिमित

जिसमें व्यास हैं न त्रिज्या

उसे छूना जितना चाहूँ
उसकी परिधि भी लगती हैं
तब क्षितिज सी मिथ्या

बिना केंद्र बिंदु के
किस प्रकार से -
खींची है किसने यह
बिना आकार की यह गोलमाल दुनिया

न ओर का पता न छोर का
फिर भी -
आकाश को भी
अपने परों से ..नाप रही हैं

हर मन के घोंसलों से ......उड़कर
एक नन्ही चिड़िया
</poem>
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