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Kavita Kosh से
न कभी बारात सजी,
न घर पर बधाई बजी,
हम तो इस जीवन में क्वाँरे ही रह गए''"
मैली-सी तहमत लगा ली,
और चित लेट गए ढीली पड़ी खाटों पर।
लंबी-सी साँस ली सिरताज़ ने-
न कभी बारात चढ़ी,
दूसरों की बारात में बस बाजा बजाते रहे!
हम तो इस जीवन में...''"
और कहने लगा-
औरों को खुश देख
भी दिया,
उसका गुन गाते रहे।''"