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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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सुरा पी थी मैंने दिन चार

उठा था इतने से ही ऊब,

नहीं रुचि ऐसी मुझको प्राप्‍त

सकूँ सब दिन मधुता में डूब,


:::हलाहल से की है पहचान,

:::लिया उसका आकर्षण मान,

:::मगर उसका भी करके पान

:::चाहता हूँ मैं जीवन-दान!
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