{{KKCatKavita}}
<poem>
जैसी भी, आखिर लड़़की है लोकल ट्रेन से उतरते हीबड़े घर की हैहमने सिगरेट जलाने के लिएएक साहब से माचिस माँगी, फिर बेटा यहाँ भी तो कड़की हैतभी किसी भिखारी नेहमारी तरफ हाथ बढ़ाया, हमने कहा-जी अभी क्या जल्दी है''भीख माँगते शर्म नहीं आती?वे बोले ओके, वो बोला- गधे होढाई मन के हो गये''माचिस माँगते आपको आयी थी क्या''?मगर बाप के सीने पर लदे होबाबूजी! माँगना देश का करेक्टर है,वह घर फँस गया तो सम्भल जाओगे।जो जितनी सफ़ाई से माँगेउतना ही बड़ा एक्टर है, ये भिखारियों का देश है लीजिए! भिखारियों की लिस्ट पेश है,
तब एक दिन भगवान से मिलके धंधा माँगने वाला भिखारी धडकते दिल सेचंदा माँगने वालापहुँच गये रुड़की, देखने लड़की दाद माँगने वालाशायद हमारी होने वाली सास औलाद माँगने वाला बैठी थी हमारे पासदहेज माँगने वाला बोली-नोट माँगने वाला यात्रा में तकलीफ़ और तो नहीं हुई और आँख मुई चल गईवे समझी कि मचल गईवोट माँगने वालाहमने काम माँगातो लोग कहते हैं चोर है,भीख माँगी तो कहते हैं, कामचोर है,
बोली-लड़की तो अंदर हैउनमें कुछ नहीं कहते,मैं लड़की की माँ हूँ जो एक वोट के लिए ,लड़की को बुलाऊँ?और इससे पहले कि मैं जुबान हिलाऊँदर-दर नाक रगड़ते हैं,आँख चल गई दुबारा घिस जाने पर रबर की खरीद लाते हैं,उन्हों ने किसी का नाम ले पुकाराऔर उपदेशों की पोथियाँ खोलकर, झटके से खड़ी हो गईं। महंत बन जाते हैं। हम जैसे गए थे लौट आए, घर पहुँचे मुँह लटकाए, पिताजी बोले-अब क्या फ़ायदा ,मुँह लटकाने लोग तो एक बिल्ले से परेशान हैं,आग लगे ऐसी जवानी में,यहाँ सैकड़ों बिल्ले डूब मरो चुल्लू भर पानी खरगोश की खाल मेंनहीं डूब सकते तो आँखें फोड़ लो,नहीं फोड़ सकते हमसे नाता ही तोड़ लो। जब भी कहीं आते हो,पिटकर ही आते हो ,भगवान जाने कैसे चलते हो?अब आप ही बताइए,क्या करूँ, कहाँ जाऊँ?कहाँ तक गुण आऊँ अपनी इस आँख देश के, कमबख़्त जूते खिलवाएगी, लाख दो लाख के, अब आप ही संभालिये,मेरा मतलब है कि कोई रास्ता निकालिए।हर कोने में विराजमान हैं।
जवान हो या वृद्धाहम भिखारी ही सही , पूरी मगर राजनीति समझते हैं ,रही अख़बार पढ़ने की बात तो अच्छे-अच्छे लोग ,माँग कर पढ़ते हैं,समाचार तो समाचार ,लोग बाग पड़ोसी से ,अचार तक माँग लाते हैं, रहा विचार! तो वह बेचारा ,महँगाई के मरघट में, मुद्दे की तरह दफ़न हो या अद्धा गया है।केवल एक लड़की जिसकी आँख चलती समाजवाद का झंडा ,हमारे लिए कफ़न होगया है,पता लगाइए कूड़ा खा रहे हैं और मिल जाये तोबदबू पी रहे हैं ,हमारे आदरणीय काका जी को बताइए। उनका फोटो खींचकर फिल्म वाले लाखों कमाते हैं झोपड़ी की बात करते हैं मगर जुहू में बँगला बनवाते हैं।''हमने कहा ''फिल्म वालों से तुम्हारा क्या झगड़ा है ?''वो बोला-''आपके सामने भिखारी नहीं भूतपूर्व प्रोड्यूसर खड़ा है बाप का बीस लाख फूँक कर हाथ में कटोरा पकड़ा!'' हमने पाँच रुपए उसके हाथ में रखते हुए कहा-''हम भी फिल्मों में ट्राई कर रहे हैं !'' वह बोला, ''आपकी रक्षा करें दुर्गा माईआपके लिए दुआ करूँगा लग गई तो ठीक वरना आपके पाँच में अपने पाँच मिला कर दस आपके हाथ पर धर दूँगा !''
</poem>