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09:33, 28 मई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=रात-बिरात / लीलाधर मंडलोई
}}
<poem>
तुमसे फिर वही दुष्टता हुई
तुम्हारा सच कच्चे रबर सा बेलगाम
कीर्ति-कलम को उत्सुक
भाग रहे हो नीले घोड़े पर सवार
बिक रहे हों जब पुरस्कार के लिए मित्र
बिके एक लेखक भी यश के एवज
रचो कुछ और गाजरघास-शुभकामनाएँ
एक अक्षम्य कृत्य कर रहा है उपभोक्ता बाजार
करो! न करो मुआफ
तुम्हें गरियाने की यह बदमस्ती तो होगी