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::::::निर्वाण!
 
 
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वह जगा क्‍या जगमगया देश का
 
:::तम से घिरा प्रसाद,
 
वह जगा क्‍या था जहाँ अवसाद छाया,
 
:::छा गया आल्‍्हाद,
 
::::::वह जगा क्‍या बिछ गई आशा किरण
 
:::::::की चेतना सब ओर,
 
वह जगा क्‍या स्‍वप्‍न से सूने हृदय-
 
:::मन हो गए आबाद
 
::::::वह जगा क्‍या ऊर्ध्‍व उन्‍नति-पथ हुआ
 
:::::::आलोक का आधार,
 
::::::वह जगा क्‍या कि मानवों का स्‍वर्ग ने
 
:::::::उठकर किया आह्वान,
 
 
हो गया क्‍या देश के
 
:::सबसे सुनहले दीप का
 
::::::निर्वाण!
 
 
वह जला क्‍या जग उठी इस जाति की
 
:::सोई हुई तक़दीर,
 
 
वह जला क्‍या दासता की गल गई
 
:::बन्‍धन बती जंजीर,
 
::::::वह जला क्‍या जग उठी आज़ाद होने
 
:::::::की लगन मज़बूत
 
वह जला क्‍या हो गई बेकार कारा-
 
:::गार की प्राचीर,
 
::::::वह जला क्‍या विश्‍व ने देखा हमें
 
:::::::आश्‍चर्य से दृग खोल,
 
::::::वह ला क्‍या मर्दितों ने क्रांति की
 
:::::::देखी ध्‍वाजा अम्‍लान,
 
 
:::हो गया क्‍या देश के
 
::::::सबसे दमके दीप का
 
:::::::निर्वाण!
 
 
वह हँसा तो मृम मरुस्‍थल में चला
 
:::मधुमास-जीवन-श्‍वास,
 
वह हँसा तो क़ौम के रौशन भविष्‍यत
 
:::का हुआ विश्‍वास,
 
::::::वह हँसा तो उड़ उमंगों ने किया
 
:::::::फिर से नया श्रृंगार,
 
वह हँसा तो हँस पड़ा देश का
 
:::रूठा हुआ इतिहास,
 
 
::::::वह हँसा तो जड़ उमंगों ने किया
 
:::::::को न कोई ठौर,
 
::::::वह हँसा तो हिचकिचाहट-भीती-भ्रम का
 
:::::::हो गया अवसान,
 
:::हो गया क्‍या देश के
 
::::::सबसे चमकते दीप का
 
:::::::निर्वाण!
 
 
वह उठा एक लौ में बंद होकर
 
:::आ गई ज्‍यों भोर,
 
वह उठा तो उठ गई सब देश भर की
 
:::आँख उनकी ओर,
 
::::::वह उठी तो उठ वड़ीं सदियाँ विगत
 
:::::::अँगराइयाँ ले साथ,
 
वह उठा तो उठ पड़े युग-युग दबे
 
 
:::दुखिया, दलित, कमजोर
 
::::::वह उठा तो उठ पड़ीं उत्‍साह की
 
:::::::लहरें दृगों के बीच
 
::::::वह उठा तो झुक गए अन्‍याय,
 
::::::अत्‍याचार के अभिमान,
 
:::हो गया क्‍या देश के
 
::::::सबसे प्रभामय दीप का
 
:::::::निर्वाण!
 
 
वह न चाँदी का, न सोने का न कोंई
 
:::धातु का अनमोल,
 
थी चढ़ी उस पर न हीरे और मोती
 
:::की सजीली खोल,
 
::::::मृत्‍त‍िका कि उपमा
 
:::::::सादगी थी आप,
 
:::किन्‍तु उसका मान सारा स्‍वर्ग सकता
 
:::था कभी क्‍या तोल?
 
::::::ताज शाहों के अगर उसने झुकाए
 
:::::::तो तअज्‍जुब कौन,
 
::::::कर सका वह निम्‍नतम, कुचले हुओं का
 
:::::::उच्‍चमतम उत्‍थान,
 
:::हो गया था देश के
 
::::::सबसे मनस्‍वी दीप का
 
:::::::निवार्ण!
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