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14:02, 29 मई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=रात-बिरात / लीलाधर मंडलोई
}}
<poem>
(कवि राजेश जोशी के एक कथन को सुनकर)
सुनो! महामहिम कवि सुनो!
कान है कानों से सुनो
आँख है आँखों से सुनो
चुप्पी है चुप्पी से सुनो
मुद्रा है मुद्रा से सुनो
भाग नहीं सकते इस दुनिया से बाहर
बेलोगे अनर्थ होगा
चुपा जाओगे उसका भी अर्थ होगा
चुप होना सबसे खतरनाक क्रिया है इस समय
ले भी लो अज्ञातवास
टोह में रहेंगे धर दबोचने को
(कविता यहां कम, कविता की पालिमिक्स ज्यादा है प्यारे!)
सुनो! महामहिम!
मोहभंग के बावजूद सुनो
सुनना नियति है तुम्हारी
हे महामहिम! कवि रहते और मरने की प्रतीक्षा करते
सुनो न सुनो, गुनो न गुनो, भुगतो अब