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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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ओ देशवासियों, बैठ न जाओ पत्‍थर से,

ओ देशवासियों, रोओ मत यों निर्झर से,

:::दरख्‍वास्‍त करें, आओ, कुछ अपने ईश्‍वर से

:::वह सुनता है

::::::ग़मज़ादों और

:::::::रंजीदों की।


जब सार सरकता-सा लगता जग-जीवन से,

अभिषिक्‍त करें, आओ, अपने को इस प्रण से-

:::हम कभी न मिटने देंगे भारत के मन से

:::::दुनिया ऊँचे

::::::आदर्शों की,

:::::::उम्‍मीदों की।


माधना एक युग-युग अंतर में ठनी रहे

यह भूमि बुद्ध-बापू-से सुत की जनी रहे;


:::प्रार्थना एक युग-युग पृथ्‍वी पर बनी रहे

:::::यह जाति

::::::योगियों, संतों

:::::::और शहीदों की।
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