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दुःख / विष्णु नागर

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<poem>
जब मैं अपने दुःखों की बात कर रहा था
उन्‍होंने कहा- करो और करते जाओ
ये हमारे दुःख भी हैं

मैंने अपने सुखों की बात की तो
उन्होंने यह नहीं कहा, ये तो हमारे भी हैं।
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