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06:22, 4 जून 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विष्णु नागर
|संग्रह=घर से बाहर घर / विष्णु नागर
}}
<poem>
जब मैं अपने दुःखों की बात कर रहा था
उन्होंने कहा- करो और करते जाओ
ये हमारे दुःख भी हैं
मैंने अपने सुखों की बात की तो
उन्होंने यह नहीं कहा, ये तो हमारे भी हैं।