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07:34, 5 जून 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= मदन कश्यप
|संग्रह= नीम रोशनी में / मदन कश्यप
}}
<poem>
कुछ रास्ते जाते हैं पहाड़ की जड़ों के पास
जहाँ से फूटती हैं पगडंडियाँ चोटी पर जाने के लिए
कुछ जाते हैं समंदर की ओर
पर लहरों तक पहुँचने से पहले ही ठिठक जाते हैं
कुछ चलते हैं दूर तक नदी के बराबर
फिर मुड़ जाते हैं किसी दूसरी तरफ
अक्सर रास्तों से फूटते हैं रास्ते
भले ही कुछ चैराहों के बाद बदल जाते हों उनके नाम
पर कभी-कभी किसी बीहड़ में अचानक दम तोड़ देता है कोई रास्ता
आदमी ही नहीं बाजदफा रास्ते भी भूल जाते हैं अपनी राह
जब रास्ता गलत हो
मंजिल तक वही पहुँच पाता है जो रास्ता भटक जाता है!