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हर घड़ी इस तरह मत सोचा करकरोजिंदा ज़िंदा रहना है तो समझौता करो
कुछ नहीं, इतना ही कहना था, हमें
आदमी की शक्ल में देखा करो
जात, मजहबमज़हब, इल्म, सूरत, कुछ नहीं
सिर्फ़ पैसे देख कर रिश्ता करो
क्या कहा, लेता नहीं कोई सलाम
मशवरा मनो मानो मेरा, सजदा करो
पास रक्खोगे तो जिल्लत पाओगे
एक आरक्षण के बल पर इन्कलाब
जागते में ख्वाब ख़्वाब मत देखा करो
लोकसत्ता, लोकमत, जनभावना
फूल संग गुलदान भी बेचा करो
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