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{{KKRachna
|रचनाकार=विष्णु नागर
|संग्रह=घर से बाहर घर / विष्णु नागर
}}
<poem>
वह देखना चाहती है सिर्फ उसे
मगर देख रही है कहीं और
जबकि वह देख रही टकटकी बांध सिर्फ उसी की ओर

एक-दूसरे को देखने के ये अपने-अपने तरीके हैं
इस तरह सुनने-समझने
मौन-मुखर रहने के भी

प्रेम की पहली सीढ़ी है यह
इसमें न कहकर कहा जाता है
न सुनकर सुना जाता है
न देखकर देखा जाता है

अभी तो बात सिर्फ इतनी-सी है.
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