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{{KKRachna
|रचनाकार=विष्णु नागर
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<poem>
है कोई ऐसा मर्द
जो कभी फूट-फूटकर नहीं रोया

कौन होगा ऐसा अभागा
जिसके आंसू कभी किसी औरत ने नहीं पोंछे
जिसे अपने सीने से नहीं लगाया, जिसे पानी नहीं पिलाया
जिसका सिर नहीं सहलाया, जिसे चुप नहीं कराया
जिसके लिए औरत कभी किसी से लड़ी नहीं?

कौन है वह मर्द
जो किसी औरत को देख
कभी पागल नहीं हुआ
उसके पांवों में नहीं गिरा
उसके आगे नहीं गिड़गिड़ाया
उससे क्षमा नहीं मांगी
उसे खोकर जरा नहीं पछताया

होगा कोई तो जरूर वह कोई कीड़ा होगा
पांवों के नीचे आने के डर से
इधर-उधर भागता फिर रहा होगा
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