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{{KKRachna
|रचनाकार=विष्णु नागर
|संग्रह=घर से बाहर घर / विष्णु नागर
}}
<poem>
एर्णाकुलम में वही सूरज है
जो इंदौर में है
गौहाटी में वही सूरज है
जो वलसाड़ में है
वही सूरज अंगोला में है
जो क्‍यूबा में है
वही कुवैत में भी है और रूस में भी
और वही सूरज मेरे सामने है

लेकिन मेरा नाम सूरजप्रसाद इसीलिए है कि
मैं चाहकर भी हर जगह नहीं हूं
सुबह-शाम पान की इसी दुकान पर पाया जाता हूं
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