|विविध
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पात्र परिचय  
पुरुष--
पुरुरवा - वेदकालीन, प्रतिष्ठानपुर के विक्रमी ऐल राजा, नायक 
महर्षि च्यवन - प्रसिद्द ;भ्रिगुवंशी, वेदकालीन महर्षि  
सूत्रधार -  नाटक का शास्त्रीय आयोजक,  अनिवार्य पात्र 
कंचुकी -
सभासद -
प्रतिहारी -
प्रारब्ध आदि 
आयु - पुरुरवा-उर्वशी का पुत्र 
महामात्य  - पुरुरवा के मुख्य सचिव 
विश्व्मना - राज ज्योतिषी 
 
 
नारी--
नटी - शास्त्रीय पात्री, सूत्रधार की पत्नी 
सहजन्या, रम्भा, मेनका, चित्रलेखा - अप्सराएं 
औशीनरी - पुरुरवा पत्नी, प्रतिष्ठानपुर की महारानी 
निपुणिका,मदनिका - औशिनरी की सखियाँ 
उर्वशी -  अप्सरा, नायिका 
सुकन्या - च्यवन ऋषी की सहधर्मिणी
अपाला - उर्वशी की सेविका  
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प्रथम अंक
साधारणोंअयमुभ्यो: प्रणयः स्मरस्य,
तप्तें ताप्त्मयसा घटनाय योग्यम._
                                                विक्रमोर्वशीयम 
राजा पुरुरवा की राजधानी,प्रतिष्ठानपुर के समीप एकांत पुष्प कानन; शुक्ल पक्ष की रात; नटी और सूत्रधार चांदनी में प्रकृति की शोभा का पान कर रहे हैं. 
                       सूत्रधार 
नीचे पृथ्वी पर वसंत की कुसुम-विभा छाई है,
ऊपर है चन्द्रमा द्वादशी का निर्मेघ गगन में.
खुली नीलिमा पर विकीर्ण तारे यों दीप रहे हैं,
चमक रहे हों नील चीर पर बूटे ज्यों चांदी के;
या प्रशांत, निस्सीम जलधि में जैसे चरण-चरण पर 
नील वारि को फोड़ ज्योति के द्वीप निकल आये हों
                        नटी  
इन द्वीपों के बीच चन्द्रमा मंद मंद चलता है,
मंद-मंद चलती है नीचे वायु श्रांत मधुवन की;
मद-विह्वल कामना प्रेम की, मानो, अलसायी-सी
कुसुम-कुसुम पर विरद मंद मधु गति में घूम रही हो 
                       सूत्रधार     
सारी देह समेत निबिड़ आलिंगन में भरने को 
गगन खोल कर बांह विसुध वसुधा पर झुका हुआ है