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'''कमबख्त हिन्दुस्तानी''' <poem>
आगे
थोडा थोड़ा और आगे
और, और आगे
उफ़्फ़! और आगे क्यों नहीं
अरे-रे-रे, रुक क्यों गए
ज़मीन पर आंखें आँखें गडाए क्यों खडे हो
हांहाँ, हांहाँ, कोशिश करो
सिर उठाकर सामने देखो
शाबाश! देखो ही नहीं
कदम क़दम भी आगे बढाओ
ओह्! सिर दाएंदाएँ-बाएं बाएँ क्यों करने लगे
सामने तो खुला रास्ता है
क्यों खुले रास्ते से डर लगता है
च्च, च्च, च्च, लेट गये
पर, सोना मत
हाय! आंखें आँखें क्यों बंद कर ली
धत्त! खर्राटे भी भरने लगे
काहिल कहीं के!
अजगर ही बने रहोगे
कमबख्त कमबख़्त हिन्दुस्तानी!
(दिनांक'''रचनाकाल : ०८-०८-२००९)08 अगस्त 2009'''</poem>
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