भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatKavita}}
<poem>
'''नीम से...'''
 
अली!
कब तक रखोगी व्रत
देह पर फिर कराओ मसाज़
मानसून के हाथों
संकुचाओ सकुचाओ मत
लजाओ मत
उसके मसाज से
तुम भींज गई हो
उतनी गहराई तक
जहां जहाँ तक
तुम्हारी आत्मा भी
नहीं पहुंची पहुँची है
अब करा ही डालो लगन
हवा के होठों पर बाँसुरी बजाएगी
कोमल आम्रवट त्याज
कूजेगी तुम्हारी गबरू बांहों बाँहों में.
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,339
edits