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|रचनाकार=सर्वत एम जमाल
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रोटी, लिबास और मकानों से कट गए
हम सीधे सादे लोग सयानों से कट गए

फिर यूँ हुआ कि सबने उठा ली क़सम यहाँ
फिर यूँ हुआ कि लोग ज़बानों से कट गए

जंगल में बस्तियों का सबब हमसे पूछिए
जंगल के पहरेदार मचानों से कट गए

बुजदिल कहूं उन्हें कि शहीदों में जोड़ लूँ
वो आदमी जो ठौर ठिकानों से कट गए

पटवारी, साहूकार, मवेशी, ज़मीनदार
खूराक मिल गयी तो किसानों से कट गए

दर्पण चमक रहा है उसी आबोताब से
चेहरे तो झुर्रियों के निशानों से कट गए

'सर्वत' जब आफताब उगाने की फ़िक्र थी
सब लोग उल्टे सीधे बहानों से कट गए</poem>
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