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05:46, 10 जून 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सर्वत एम जमाल
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<poem>
हर कहानी चार दिन की, बस
जिंदगानी, चार दिन की बस
तज़किरा जितने बरस कर लो
नौजवानी चार दिन की, बस
एक दिन सब लौट आयेंगे
बदगुमानी चार दिन की, बस
हुक्मरां सारे मुसाफिर हैं
राजधानी चार दिन की बस
खून टपका, जम गया, तो क्या
यह निशानी चार दिन की, बस
जब हरम में बांदियाँ आयें
फिर तो रानी चार दिन की, बस
जल्द ही सैलाब फूटेगा
बेज़ुबानी चार दिन की, बस
मुल्क पर हर दिन नया खतरा
सावधानी, चार दिन की, बस</poem>
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