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05:52, 10 जून 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सर्वत एम जमाल
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<poem>
सब ये कहते हैं कि हैं सौगात दिन
मुझको लगते हैं मगर आघात दिन
रात के खतरे गये, सूरज उगा
ले के आया है नये ख़तरात दिन
तीरगी, सन्नाटा, चुप्पी, सब तो हैं
कर रहे हैं रात को भी मात दिन
शब के ठुकराए हुओं को कौन गम
इन को तो ले लेंगे हाथों हाथ दिन
दुःख के थे, भारी लगे, बस इस लिए
सब के सब करने लगे खैरात दिन
दूध से पानी अलग हो किस तरह
लोग कोशिश कर रहे हैं रात दिन
हमको बख्शी चार दिन की जिंदगी
जबकि थे दुनिया में पूरे सात दिन </poem>
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