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|रचनाकार=सरवर आलम राज़ 'सरवर'
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<poem>
डूबता है दिल कलेजा मुँह को आया जाए है
हाय! यह कैसी क़ियामत याद तेरी ढाए है !

इश्क़ की यह ख़ुद फ़रेबी!अल-अमान-ओ-अल हफ़ीज़ !
जान कर वरना भला खु़द कौन धोखा खाए है

आँख नम है ,दिल फ़सुर्दा है ,जिगर आशुफ़्ता खू
लाख समझाओ वा लेकिन चैन किसको आए है ?

क्या तमन्ना ,कौन से हसरत ,कहाँ की आरज़ू ?
रंग-ए-हस्ती देख कर दिल है कि डूबा जाए है !

ऐतिबार-ए-दोस्ती का ज़िक्र कोई क्या करे ?
ऐतिबार-ए-दुश्मनी भी अब तो उठता जाए है !

इस दिल-ए-बे-मेह्र की यह कज अदायी देखिए
आप ही शिकवा करे है ,आप ही पछताए है !

बेकसी तो देखिये मेरी राह-ए-उम्मीद में
दिल को समझाता हूँ मैं और दिल मुझे समझाए है !

क्या शिकायत हो ज़माने से भला ’सरवर’ कि अब?
मैं जहाँ हूँ मुझसे साया भी मिरा कतराए है !

-सरवर-
कज अदायी = बेरुख़ी</poem>
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