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{{KKRachna
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
|संग्रह=युगांत / सुमित्रानंदन पंत; पल्लविनी / सुमित्रानंदन पंत
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शत कुसुमों में हँस रहा कुंज उडु-उज्वल,
लगता सारा जग सद्य-स्मित ज्यों शतदल।
 
है पूर्ण प्राकृतिक सत्य! किन्तु मानव-जग!
क्यों म्लान तुम्हारे कुंज, कुसुम, आतप, खग?
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