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बाकी बच गया अण्डा / नागार्जुन

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रचनाकार: [[नागार्जुन]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=नागार्जुन]] }}~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~{{KKPrasiddhRachna}}{{KKCatKavita‎}}<poem>पाँच पूत भारतमाता के, दुश्मन था खूंखारखूँखारगोली खाकर एक मर गया,बाकी बाक़ी रह गये गए चार
चार पूत भारतमाता के, चारों चतुर-प्रवीन
देश-निकाला मिला एक को, बाक़ी रह गए तीन
देश-निकाला मिला एक को, बाकी रह गये तीन तीन पूत भारतमाता के, लड़ने लग गये गए वो अलग हो गया उधर एक, अब बाकी बाक़ी बच गये गए दो
दो बेटे भारतमाता के, छोड़ पुरानी टेक
चिपक गया है एक गद्दी से, बाक़ी बच गया एक
चिपक गया है एक गद्दी से, बाकी बच गया एक एक पूत भारतमाता का, कन्धे पर है झन्डाझण्डापुलिस पकड कर पकड़कर जेल ले गई, बाकी बच गया अंडाअण्डा
१९५० में लिखित'''रचनाकाल : 1950</poem>
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