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होते गये / विजय वाते

18 bytes added, 03:21, 11 जून 2010
{{KKRachna
|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह= गज़ल ग़ज़ल / विजय वाते
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
जैसे जैसे हम बड़े होते गये,
खूठ झूठ कहने मे खरे होते गये |
चाँद बाबा गिल्ली डंडा इमलियाँ,
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