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14:32, 11 जून 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कविता किरण
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
बहुत है ख़ामोशी तुम्ही कुछ कहो ना
है हरसू उदासी तुम्ही कुछ कहो ना
मैं पतझड़ का मौसम हूँ चुप ही रहा हूँ
ओ गुलशन के वासी! तुम्ही कुछ कहो ना
कि ढलने को आई शबे-गम ये आधी
है बाकी ज़रा-सी तुम्ही कुछ कहो ना
समाकर समंदर में भी रह गयी है
लहर एक प्यासी तुम्ही कुछ कहो ना
मेरे दिल में तुम हो कहीं ये ज़माना
न ले ले तलाशी तुम्ही कुछ कहो ना
'किरण' बुझ न जाना,गमो की फिजा में
चली है हवा-सी तुम्ही कुछ कहो ना
</poem>
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