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डूबना तेरे ख्यालों में भला लगता है
तेरी यादों से बिछड़ना भी सजा लगता है

क्यों क़दम मेरे तेरी और खिंचे आते हैं
तेरे घर का कोई दरवाज़ा खुला लगता है

जब तेरा ख्वाब हो आबाद मेरी पलकों में
दिल भी धडके तो निगाहों को बुरा लगता है

लड़खड़ा जाएँ क़दम साँस भी हो बेकाबू
जब शहर में तेरे आने का पता लगता है

आँख अंगूरी हुई होंठ हुए अंगारे
तूने कानों में कोई शेर कहा लगता है

ऐ 'किरण' बहुत जहाँ में हैं ग़ज़ल गो लेकिन
तेरा अंदाज़ ज़माने से जुदा लगता है
</poem>
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