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{{KKRachna
|रचनाकार=सर्वत एम जमाल
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हमारा सब्र तोला जा रहा है
मुसल्सल झूठ बोला जा रहा है।

अभी कब्जा नहीं है उसके तन पर
अभी तो मन टटोला जा रहा है।

यकीनन हो चुकी है डील पक्की
बड़े साहब का झोला जा रहा है।

मुझे पैसा मिला तो लोग बदले
ज़ुबां में शहद घोला जा रहा है।

सुना है शांति है सरहद पे, तो फिर
कहाँ बारूद - गोला जा रहा है ? </poem>
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