भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
इस तरह से है यहाँ विख्‍यात
मैंनेयह मैंने यह लड़कपन में सुना था,
और मेरे बाप को भी लड़कपन में
बताया गया था, बाबा लड़कपन में बड़ों से सुन चुके थे, और अपने पुत्र को मैंने बताया है कि तुलसीदास आए थे यहाँ पर, तीर्थ-यात्रा के लिए निकले हुए थे, पाँव नंगे, वृद्ध थे वे किंतु पैदल जा रहे थे, हो गई थी रात, ठहरे थे कुएँ परी, एक साधू की यहाँ पर झोंपड़ी थी, फलाहारी थे, धरा पर लेटते थे, और बस्‍ती में कभी जाते नहीं थे, रात से ज्‍यादा कहीं रुकते नहीं थे, उस समय वे राम का वनवास लिखने में लगे थे।  रात बीते उठे ब्राह्म मुहूर्त में, नित्‍यक्रिया की, चीर दाँतन जीभ छीली, और उसके टूक दो खोंसे धरणि में; और कुछ दिन बाद उनसे नीम के दो पेड़ निकले, साथ-साथ बड़े हुए, नभ से उठे औ' उस समय से आज के दिन तक खड़े हैं।"  मैं लड़कपन में पिता के साथ उस थल पर गया था। यह कथन सुनकर पिता ने उस जगह को सिर नवाया और कुछ संदेह से कुछ, व्‍यंग्‍य से मैं मुसकराया।  शेष भाग जल्‍द ही पूरी कविता टंकित कर दी जाएगी।
195
edits