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10:10, 13 जून 2010
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न शाहों में सही इंसान है ना अमीरों में हैबनने के इरादों पर अमल होगा जो देने की कुव्वत फ़कीरों में है किसी के काम आयेंगे तभी जीवन सफल होगा
मैं मंज़िल की परवाह करता नहींमेरा ठिकाना नाम तो राहगीरों है में नही जब एक पल का,एक लम्हे का बहुत मुश्किल हैये कहना कहाँ पर कौन कल होगा
जो हासिल न थी बादशाहों को भटकता फिर रहा हूँ पर मुझे मालूम है ये भी वो ताक़त यहाँ अब वज़ीरों में हैवहीँ पर जायेगी बेटी जहाँ का अन्न-जल होगा
वतन के लिए दे गया जान जोमुकद्दर का लिखा कितना सही होगा खुदा जाने मगर जो कर्म से लिख दोगे वो ज़िंदा अभी भी नज़ीरों में हैबिक्कुल अटल होगा
हथेली बता किस तरह ज़माने के हर इक दुख-दर्द से जिऊँजुड जायेंगे जब हमअभी कहीं भी देख कर आंसूं हमारा मन सजल होगा जहाँ कोई न होगा और क्या-क्या लकीरों में है मुश्किल सामने होगी वाहन पर साथ देने को हमारा आत्मबल होगा
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