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<poem>
शायद उसने मुझको तन्हा देख लिया है
दुःख ने मेरे घर का रस्ता देख लिया है

अपने आप से आँख चुराए फिरती हूँ मैं
आईने में किसका चेहरा देख लिया है

उसने मुझे दरअस्ल कभी चाहा ही नहीं था
खुद को देकर ये भी धोखा दे ख लिया है

उससे मिलते वक़्त का रोना कुछ फ़ितरी था
उससे बिछड़ जाने का नतीजा देख लिया है

रुखसत करने के आदाब निभाने ही थे
बंद आँखों से उसको जाता देख लिया है
</poem>
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