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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन …
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{{KKRachna
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर
}}
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<poem>
घर के मिटने का गम तो होता है
अपने मलबे पे कौन होता है
ख़ुशबू ए गैर तन से आती है
बाजुओं में तुझे समोता है
मेरे दिल आंसुओं से हाथ उठा
कैसी बारिश से ज़ख्म धोता है
शाम होते ही मेरी पलकों पर
कौन ये हार से पिरोता है
रात के बेकराँ अँधेरे में
कोई जुगनू की नींद सोता है
</poem>
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|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर
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घर के मिटने का गम तो होता है
अपने मलबे पे कौन होता है
ख़ुशबू ए गैर तन से आती है
बाजुओं में तुझे समोता है
मेरे दिल आंसुओं से हाथ उठा
कैसी बारिश से ज़ख्म धोता है
शाम होते ही मेरी पलकों पर
कौन ये हार से पिरोता है
रात के बेकराँ अँधेरे में
कोई जुगनू की नींद सोता है
</poem>