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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन …
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{{KKRachna
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
खुली आँखों में सपना झाँकता है
वो सोया है कि कुछ कुछ जागता है
तिरी चाहत के भीगे जंगलों में
मिरा तन मोर बन के नाचता है
मुझे हर कैफ़ियत<ref>व्याख्या</ref> में क्यों न समझे
वो मेरे सब हवाले<ref>संदर्भ</ref> जानता है
मैं उसकी दस्तरस<ref>हाथ की पहुँच</ref> में हूँ मगर वो
मुझे तेरी रिज़ा<ref>स्वीकृति</ref> से माँगता है
किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल
बहाने से मुझे भी टालता है
</poem>
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|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर
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<poem>
खुली आँखों में सपना झाँकता है
वो सोया है कि कुछ कुछ जागता है
तिरी चाहत के भीगे जंगलों में
मिरा तन मोर बन के नाचता है
मुझे हर कैफ़ियत<ref>व्याख्या</ref> में क्यों न समझे
वो मेरे सब हवाले<ref>संदर्भ</ref> जानता है
मैं उसकी दस्तरस<ref>हाथ की पहुँच</ref> में हूँ मगर वो
मुझे तेरी रिज़ा<ref>स्वीकृति</ref> से माँगता है
किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल
बहाने से मुझे भी टालता है
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