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{{KKRachna
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=ख़ुशबू / परवीन शाकिर
}}
{{KKCatNazm}}
<poem>
अजनबी!
 
कभी ज़िन्दगी में अगर तू अकेला हो
 
और दर्द हद से गुज़र जाए
 आंखें आँखें तेरी 
बात-बेबात रो रो पड़ें
 
तब कोई अजनबी
 तेरी तन्हाई के चांद चाँद का नर्म हाला <ref>वृत्त</ref> बने तेरी क़ामत <ref>देह की गठन</ref> का साया बने तेरे ज़्ख़्मों ज़ख़्मों पे मरहम रखे 
तेरी पलकों से शबनम चुने
 
तेरे दुख का मसीहा बने
---------------------------{{KKMeaning}}हाला=वॄत्त; क़ामत= देह की गठन</poem>
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