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Kavita Kosh से
हो अब तो सुनवाई बाबा !
सबकी सुनता ; , हमरी अब तक
बारी क्यों न आई बाबा ?
तीन छोकरा, इक घरवाली,
है इक हमरी माई ; -बाबा !
पर… इनकी खातिर भी हमरी
बिना मजूरी गाड़ी घर की
कैसन बता चलाई बाबा ?
हमरा कौनो और न जग में
हम सबका अजमाई बाबा !
न हमरा अपना भैया है,
न जोरू का भाई, बाबा !
और मुई दुनिया आगे हम
हाथ नहीं फैलाई बाबा !
जानके भी अनजान बने, है
इसमें तो'र बड़ाई बाबा ?
नींद में हो का बहरे हो ? हम
कितना ढोल बजाई बाबा ?
हम भी ज़िद का पूरा पक्का
गरदन इहां कटाई बाबा !
तुम्हरी चौखट छोड़' न दूजी
चौखट हम भी जाई बाबा !
कहदे, हमरी कब तक होगी
यूं ही हाड-पिंजाई बाबा ?
बोल ! बता, राजेन्द्र में का है
ऐसन बुरी बुराई बाबा
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