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{{KKRachna
|रचनाकार=राजेन्द्र स्वर्णकार
|संग्रह=
}}
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<poem>
प्राची में केशर ढुलके,
पूरे भूमंडल पर छा जाए !
आलोकित नव दिनकर
जगती का तिमिर-तुमुल झुलसा जाए !
आकंठ आनंदित दसों दिशाएँ,
सुख समृद्धि चहुँ ओर हो !
यह भोर सुहानी भोर हो !!
संदेश सहस्रों आशाओं के
आगत क्षण क्षण ले आएं !
अवसाद मिटें , भ्रम-जाल कटें ,
मिल जाएं बिछोही ; मुसकाएं !
विश्वास वृष्टि में आर्द्र-सजल,
आह्लादित हर दृग-कोर हो !
यह भोर सुहानी भोर हो !!
अवनी के कण कण , जल में ,
पवन में अमृत-जीवन सरसाए !
निज कर्म-लीन तल्लीन हो'
हर प्राणी झूमे नाचे गाए !
ना कोई व्यथित, मन मन प्रमुदित हो,
निकट निकट हर छोर हो !
यह भोर सुहानी भोर हो !!
</poem>
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प्राची में केशर ढुलके,
पूरे भूमंडल पर छा जाए !
आलोकित नव दिनकर
जगती का तिमिर-तुमुल झुलसा जाए !
आकंठ आनंदित दसों दिशाएँ,
सुख समृद्धि चहुँ ओर हो !
यह भोर सुहानी भोर हो !!
संदेश सहस्रों आशाओं के
आगत क्षण क्षण ले आएं !
अवसाद मिटें , भ्रम-जाल कटें ,
मिल जाएं बिछोही ; मुसकाएं !
विश्वास वृष्टि में आर्द्र-सजल,
आह्लादित हर दृग-कोर हो !
यह भोर सुहानी भोर हो !!
अवनी के कण कण , जल में ,
पवन में अमृत-जीवन सरसाए !
निज कर्म-लीन तल्लीन हो'
हर प्राणी झूमे नाचे गाए !
ना कोई व्यथित, मन मन प्रमुदित हो,
निकट निकट हर छोर हो !
यह भोर सुहानी भोर हो !!
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