नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन …
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{{KKRachna
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर
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<poem>
नज़र भी आया उसे अपने पास भी देखा
मिरी निगाह ने ये इल्तिबास भी देखा
बहुत दिनों पे चले और घर से चलते वक़्त
किसी की आँख से अपना लिबास भी देखा
यही कहा कि नहीं उसका रास्ता था अलग
फिर उसके बाद ही खुद को उदास भी देखा
मुकाबले पे ज़माने के आ गए और फिर
ब पेश ए आईना दिल का हिरास भी देखा
वो मुझमें सोच के किस जाविये से रोशन हो
यकीं भी देख लिया है क़यास भी देखा
</poem>