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{{KKRachna
|रचनाकार=परवीन शाकिर
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<poem>
कुछ फ़ैसला तो हो कि किधर जाना चाहिए
पानी को अब तो सर से गुज़र जाना चाहिए

सारा जुआर भाटा मिरे दिल में है मगर
इलज़ाम ये भी चाँद के सर जाना चाहिए

जब भी गए अज़ाब ए दर ओ बाम था वही
आखिर को कितनी देर से घर जाना चाहिए

तोहमत लगा के माँ पे जो दुशमन से दाद ले
ऐसे सुखन फ़रोश को मर जाना चाहिए
</poem>
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