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{{KKRachna
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर
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<poem>
हमसे जो कुछ कहना है वो बाद में कह
अच्छी नदिया आज ज़रा आहिस्ता बह

हवा मिरे जूड़े में फूल सजाती जा
देख रही हूँ अपने मनमोहन की राह

उसकी खफगी जाड़े की नरमाती धूप
पारो सखी इस हिद्दत के हंस खेल के सह

आज तो सचमुच के शहजादे आएँगे
निंदियाँ प्यारी आज न कुछ परियों की कह

दोपहरों में जब गहरा सन्नाटा हो
शाखों शाखों मौजे हवा की सूरत बह
</poem>
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