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{{KKRachna
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=इन्कार / परवीन शाकिर
}}
{{KKCatNazm}}<poem>कच्चा-सा इक मकांमकाँ, कहीं आबादियों से दूर
छोटा-सा इक हुजरा, फ़राज़े-मकान पर
सब्ज़े से झांकती झाँकती हुई खपरैल वाली छत
दीवारे-चोब पर कोई मौसम की सब्ज़ बेल
उतरी हुई पहाड़ पर बरसात की वह रात
कमरे में लालटेन की हल्की-सी रौशनी
वादी में घूमता हुआ इक चश्मे-शरीर<ref>शरारती झरना</ref>
खिड़की को चूमता हुआ बारिश का जलतरंग
{{KKMeaning}}
</poem>