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{{KKRachna
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=इन्कार / परवीन शाकिर
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<poem>
उसने फूल भेजे हैं
 फिर मेरी अयादत <ref>शोकमिलन</ref> को  
एक-एक पत्ती में
 
उन लबों की नरमी है
 उन जमील <ref>सुन्दर</ref> हाथों की ख़ुशगवार हिद्दत <ref>उग्रता</ref> है उन लतीफ़ सांसों साँसों की 
दिलनवाज़ ख़ुशबू है
 
दिल में फूल खिलते हैं
 
रुह में चिराग़ां है
 ज़िन्दगी मुअत्तर <ref>सुगंधित</ref> है 
फिर भी दिल यह कहता है
 
बात कुछ बना लेना
 
वक़्त के खज़ाने से
 
एक पल चुरा लेना
 काश! वो खुद ख़ुद आ जाता
अयादत=शोकमिलन, ज़मील=सुंदर, हिद्दत=उग्रता, मुअत्तर=सुगंधित{{KKMeaning}}</poem>
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