Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
शदीद दुःख था अगरचे तिरी जुदाई का
सिवा है रंज हमें तेरी बेवफाई का

तुझे भी ज़ौक नए तजुर्बात का होगा
हमें भी शौक था कुछ बख्त आज़माई का

जो मेरे सर से दुपट्टा न हटने देता था
उसे भी रंज नहीं मेरी बेरिदाई का

सफ़र में रात जो आई तो साथ छोड़ गए
जिन्होंने हाथ बढ़ाया था रहनुमाई का

रिदा छिनी मिरे सर से मगर मैं क्या कहती
कटा हुआ तो न था हाथ मेरे भाई का

मैं सच को सच भी कहूँगी मुझे खबर ही न थी
तुझे भी इल्म न था मेरी इस बुराई का

कोई सवाल जो पूछे तो क्या कहूँ उससे
बिछड़ने वाले सबब तो बता जुदाई का
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
3,286
edits