भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
खड़ा-खड़ा जो सेवा करता,
सबका जीवनदाता ।
बिन जिसके ना न बादल आएँ,
बोलो क्या कहलाता ?
ऊँचा-ऊँचा जो उड़े,
कभी डोर उसकी खिंचे,
कभी पेच में ढील ।।